मुश्किलों में पढ़कर नौकरी पाई, अब जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई


Inspiring story of sunil raika, hariyana super-30 winner, biography of sunil raika, success story of sunil raika, motivational story sunil rayka, super-30 winner teacher sunil raika, bhirdana fatehabad hariyana, personal life story sunil raika, sunil raika biography, bank manager sunil raika, inspiring teacher
शिक्षा का महत्व इंसान की जिंदगी में काफी अहम होता है।शिक्षित समाज ही लोगों को सही दिशा में ले जा सकता है, लेकिन कभी कभी ऐसा भी होता है कि मजबूरियों के कारण कुछ बच्चे शिक्षा का लाभ नहीं ले पाते हैं,
गरीब परिवार के बच्चों के पास कोचिंग सेंटर को फीस देने के लिए पैसे नहीं होने के कारण बच्चे प्रतियोगी परीक्षा में नहीं बैठ तक नहीं पाते हैं।ऐसे हालातों में इन सबके बीच किसी ना किसी राज्य या प्रांत में ऐसे मसीहा मिलते हैं जो इन बच्चों के सपनों को हकीकत में बदलने के लिए अपनी पूरी जान लगा देते हैं।इन्हीं मसीहों में से एक मसीहे की कहानी आपके सामने रखने जा रहा हूँ और दावा करता हूँ वो कहानी आपको प्रेरणा देने से नहीं चुकेगी।इस मसीहे का नाम है सुनील राईका।
चलिये बढ़ते हैं कहानी की ओर....
जीवन में नि:स्वार्थ भाव से ज्ञान का दीपक जला रहे सुनील राईका उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो सामाजिक परिवर्तन की बात तो करते हैं लेकिन उस दिशा में सार्थक प्रयास करने के लिए संसाधनों की कमी का बहाना ढूंढते हैं।

आज हम बात करते हैं ऐसे शख्स की कहानी की जो जीरो से हीरो बना। इनकी कहानी अभी हाल में रिलीज हुई रितिक रोशन की फिल्म सुपर-30 के आनंद कुमार से कम नहीं है। सुनील राईका का जन्म 10 जून 1986 को हरियाणा के नरवाना शहर में हुआ।इनके पिताजी का नाम जीतसिंह रैबारी और माता का नाम तुलसा देवी है। जब सुनील राईका 14 वर्ष के थे तब इनके पिताजी का देहांत हो गया और माताजी को बेटे सुनील और तीन बेटियों के साथ अपने मायके भिरडा़ना(फतेहाबाद) में रहने के लिए आना पडा़ क्योंकि उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं था।


गरीबी से लड़कर बने अधिकारी, निःशुल्क कोचिंग चलाकर छात्रों को करा रहे है प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी


हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गांव भिरड़ाना निवासी सुनील राईका पीएनबी में बैंक मैनेजर के पद पर कार्यरत है। वे बैंक की छुट्टी के पश्चात शाम को 2 से 3 घंटे बच्चों को प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करवाते है। बैंक के अवकाश वाले दिन पूरा समय विधार्थियों पर लगाते हैं, साथ ही समय-समय पर बच्चों की परीक्षा लेकर उनका शैक्षणिक स्तर को भी जांचते हैं,इसके लिए उन्होंने पिछले कई वर्षों से "मिशन एजुकेशन व्हाट्सएप ग्रुप" का गठन किया हुआ है जहां विभिन्न राज्यों से विद्यार्थी क्वीज में भाग लेते हैं और जो प्रश्न नहीं आते,उन पर विचार विमर्श करते हैं।सुनील राईका जी बताते हैं कि शुरुआती दौर में उनको काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा, जगह की दिक्कत आयी, उन्होंने एक बड़ा कमरा किराये पर लिया जिसका भुगतान ग्रुप के सदस्य मिलकर करते थे। 2015 में जब इस ग्रुप का गठन किया गया तब इसमें शुरुआती दौर में 90 जरूरतमंद बच्चों को जोड़ा गया, आज इस मुहिम में 256 बच्चे जुड़े हुए हैं। भिरड़ाना गांव से शुरू हुई यह मुहिम आज 10 से 11 राज्यों में जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा मुहिया करवा रही है और वो भी निःशुल्क। सुनील राईका के इस अभियान में उनके साथी भी पूरी भागीदारी निभा रहे हैं जिनमें धर्मपाल राईका,कर्मवीर राईका का मुख्य रूप से सहयोग रहा है। इन साथियों की बदौलत यह अभियान सफल राह पर चल रहा है।वर्तमान में ग्रुप की बागडोर संजय कालवां,प्रीति राईका,अमित विश्नोई और संदीप राईका संभाल रहे हैं और यह सुबह शाम बच्चों को कोचिंग दे रहे हैं। सुनील राईका बताते है कि अभी तक इस अभियान के तहत 25 से 30 बच्चे सरकारी जॉब लग चुके हैं या प्राइवेट कंपनी,प्राइवेट विधालय में अच्छी सैलरी पर काम कर रहे हैं।हमारे इस निःशुल्क अभियान के तहत पढ़े बच्चें एक दूसरे के हालात और आर्थिक स्थिति को भलीभांति समझते हैं, इसलिए वे सभी इस मिशन में एक दूसरे का सहयोग करते हैं और इस अभियान के तहत बच्चों को निःशुल्क शिक्षा और आर्थिक सहायता भी करते हैं।
सुनील राईका जी दिन में अपने बैंक का कार्य निपटाते हैं व ग्रुप को बिल्कुल भी समय नहीं दे पाते लेकिन बैंक समय के बाद का बाकी सारा समय जरूरतमंद एवं आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की पढ़ाई में लगा देते हैं।यह दोनों कार्य सुनील राईका बखूबी से निभा रहे हैं। सुनील राईका आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं है। बच्चों को पढ़ाना, उनका मनोबल बढ़ाना उनका जुनून है और इसे अपने जीवन का मिशन बना लिया है।

सुनील राईका ने आर्थिक तंगी को न केवल महसूस किया है बल्कि जिया है।

पिता के देहांत के बाद परिवार टूट सा गया लेकिन सुनील का पढाई के प्रति इतना जुनून था कि ऐसे हालातों में भी उन्होंने 10वीं व 12वीं की परीक्षा में अपने गांव में टॉप किया। फिर गांव में आजीविका के लिए निजी स्कूल में अध्यापक के रूप में नौकरी की और साथ ही बैंकिंग की तैयारी शुरू की। राईका का कहना है कि आर्थिक तंगी के कारण मुझे जिस मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा, गरीब बच्चों की हालात मेरी जैसी न हो इसी कारण मुझे 2005 में निःशुल्क शिक्षा की शुरुआत करनी पड़ी, यही जनून एक मिशन बन गया। 2009 में मेरा चयन बैंक में लिपिक के तौर पर हुआ। सुनील बताते हैं कि मुझे अफसोस भी है और दुख भी है जब हमारी जिंदगी में अच्छे दिन आये, मां का कर्ज अदा करने का समय आया लेकिन 2010 में मां तुलसा देवी इस दुनिया को अलविदा कह गयी।लेकिन उस समय तक उन्होंने मुझे इतना कामयाब बना दिया कि मैं अनेकों वंचित विधार्थियों का सहारा बन सकूं।इन्हीं हालातों में बहिनों की शादियां भी की और पढाई को निरंतर रखा।स्वध्याय से 2010 में सुनील ने स्नातक किया ओर 2012 में उनकी शादी सुमन से हुई। उनके दो बच्चें भी हैं। बैंक की सख्त नौकरी,सामाजिक कार्य,विधार्थियों को शिक्षा के लिए समय देने के कारण परिवार को समय कम दे पाता हूँ, इसके बावजूद भी परिवार का इस कार्य में पूरा सहयोग मिलता है, मेरा मानना है कि ऐसे जरूरतमंद विद्यार्थी ही मेरा परिवार है।पढना और पढाना मेरा शौक है,अन्य विधार्थियों की सहायता करने के साथ साथ स्वध्याय से उन्होंने बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाएं पास की जिसमें बैंकिंग,एसएससी जैसी अनेको परीक्षाएं शामिल है।
2014 में उनका सहायक प्रबन्धक के पद पर प्रमोशन होने के बाद चंडीगढ स्थानांतरण,2017 में प्रबन्धक के पद पर प्रमोशन होने पर जालन्धर स्थानांतरण हुआ लेकिन इस कार्यकाल अवधि के दौरान भी उन्होंने बच्चों को पढ़ाने का क्रम निरन्तर जारी रखा जिसमें उनको बच्चों से जुड़ा रहने के लिए सोशल साइट्स पर अनेकों नौकरी प्राप्त कर चुके विधार्थियों का सहयोग मिलता रहा। 2018 में भिरड़ाना के नजदीक भूना में तबादला हुआ। अब बच्चों को सुबह,शाम और अवकाश वाले दिन कोचिंग दे रहे हैं।वर्तमान में उनका प्रमोशन मैनेजर से सीनियर मैनेजर के रैंक पर हुआ है।

मां से मिली पढ़ने की प्रेरणा


सुनील राईका बताते हैं कि पिताजी का देहांत होने की वजह से वह मां तुलसा देवी और अपनी बहनों के साथ अपने पैतृक निवास स्थान नरवाना से अपने ननिहाल गांव भिरड़ाना आ गए थे। उनकी आर्थिक हालात इतनी खराब थी कि रहने को जगह तक नहीं थी,पक्का मकान तो बहुत दूर की बात। तब उन्हें भिरडा़ना में मौसी के खाली पड़े प्लाट में कच्चा मकान बनाकर रहना पड़ा, मुझे याद है मां ने कच्चा मकान अपने हाथों से बनाया। लाइट का अभाव था और छत से बारिश का पानी आता था,ऐसे कच्चे मकान में हमने लंबा वक्त बिताया।परिवार की आजीविका के लिए मां तुलसा देवी और बड़ी बहन को लोगों के खेतों में कपास की चुगाई, गेंहू की कटाई करके और बकरी पाल कर घर चलाना पड़ा।लेकिन सबसे बडी़ सुकून की बात ये रही कि मां ने अनपढ़ होते हुए भी कभी मेरी पढ़ाई के साथ समझौता नहीं होने दिया। कभी-कभी भूखे रहकर भी रात गुजारनी पड़ी। उन्हीं दिनों को याद करके सुनील राईका बताते हैं कि मैने मां का काम में हाथ बटाने की कोशिश की ताकि मां का हाथ बताऊंगा तो दो पैसे ज्यादा मिलेंगे लेकिन मां यह कहकर रोक देती थी कि बेटा स्कूल से किसी भी हाल में छुट्टी नहीं करनी है, 2 बजे से पहले तो खेत में बिल्कुल भी नहीं आना है।पिताजी के देहांत के बाद बहिनों की पढ़ाई छूट चुकी थी इसलिए माँ नहीं चाहती थी कि बेटा भी अनपढ़ रहे। एक समय ऐसा भी आया कि हमारा परिवार आर्थिक रूप से इतना कमजोर हो गया था कि धैर्य भी जवाब दे गया और मुझे लगने लगा कि पढ़ाई बीच मे छोड़नी पड़ेगी यह नजर आने लगा कि मुझे किसी ढाबे में बर्तन धोने या वेटर का काम करना पड़ेगा और बहुत से लोगों ने यह सलाह देते देर भी नहीं लगाई। मां ने उस वक्त यह आपबीती मेरे अध्यापकों को बताई, उस वक्त मेरी स्थिति को मेरे गुरुजनों ने संभाला। यह मेरे सफर का टर्निग पॉइंट था। उन्होंने मुझे गांव के स्कूल में फ्री पढ़ाया और शहर के स्कूल में भी फ्री एडमिशन करवाया,इसमें मुख्य रूप से औमप्रकाश बिश्नोई,अंशुल तनेजा,सतीश बिश्नोई सर्वजीत मान का सहयोग रहा।
मां की प्रेरणा और गुरुजनों के सहयोग से ही मैंने विपरीत परिस्थितियों व आर्थिक अभाव में पढ़ाई निरन्तर जारी रखी।

हरियाणा से सुपर-30 में चयन


Sunil Raika Bhirdana

शिक्षादुत बने सुनील राईका पिछले 15 वर्षों से लगातार जरूरतमंद विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान कर उनका भविष्य सुधारने में लगे हुए है। उनके इस सहरानीय कार्य के लिए पिछले वर्ष "आईबी हब्स" संस्था द्वारा 15 अक्टूबर 2019 को हैदराबाद में सुपर-30 प्रोग्राम में सम्मानित किया जा चुका है। इस संस्था ने देशभर में शिक्षा की अलख जगाने वाले 30 शिक्षकों का चयन किया था जिसमें सुनील राईका हरियाणा से एकमात्र शिक्षक थे जिनका इस सम्मान के लिए चयन हुआ। भारत में 30 शिक्षकों में से चयन होना कोई मामूली बात नहीं है यह हरियाणा राज्य और राईका बिरादरी के लिए गौरव की बात है।

समाज के नाम संदेश


सरल एवं शांत स्वभाव के धनी सुनील राईका बताते हैं कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों,हमें पढ़ाई निरन्तर जारी रखनी चाहिए,पढ़ाई को जीवन मे उतारना चाहिए। उनका कहना है सदैव सकारात्मक सोच और सकारात्मक लोगों को ही अपने सम्पर्क में रखें,मेहनत करें और परमात्मा में विश्वास रखें, सफलता एक दिन जरूर दौड़ी आएगी, आज नहीं तो कल। जरूरी नहीं है सभी सरकारी नौकरी लगते हैं लेकिन अच्छी शिक्षा अच्छे आचरण के साथ जीवन में सकारात्मक ऊर्जा पैदा करेगी और आत्मनिर्भर बनाएगी। गलत संगत पढ़ाई में बाधा बनती है, उन्होंने बताया कि मेरे पापा हम सभी को बहुत प्यार करते थे, हम भी उन्हें बहुत प्यार करते थे लेकिन उनकी गलत संगत और शराब की गलत आदत ने उनकी जान ले ली, उसका खामियाजा हमारे पूरे परिवार को और सबसे ज्यादा मेरी मां को भोगना पड़ा। इसलिए नशे  से बिल्कुल दूर रहना चाहिए। आज हमारे मिशन में 35 से अधिक लड़कियां शिक्षा ले रही है, अगर लड़की पढ़ेगी तो वह अपने परिवार को आत्मनिर्भर बना पाएगी, अपने बच्चों को शिक्षित कर पायेगी तथा दो कुल में उजियारा फैला पाएगी।
सुनील राईका का मानना है कि शिक्षित युवाओं को समय निकालकर गरीब एवं असहाय बच्चों को शिक्षा रूपी दान देने के लिए आगे आना चाहिए ताकि समाज से अशिक्षा के अंधेरे को दूर किया जा सके। आर्थिक अभाव में बेबस होकर हथियार डालने वाले युवाओ के लिए सुनील राईका की दास्तां युवाओं को संघर्ष के लिए प्रेरित करने वाली है।