बाबा मस्तनाथ जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
બાબા મસ્તાનાથનો સંક્ષિપ્ત જીવન પરિચય

बाबा मस्तनाथ द्वारा योगराज को भर्तरिहरी और गोपीचंद का दर्शन कराना उस वन से मस्तनाथ ने एक अत्यंत निर्जन वन मैं प्रवेश किया | यह वन खोखरा कोट के नाम से प्रसिद्ध है तथा अस्थल बोहर के वन का ही एक भाग है | इस पर उनके प्रिये शिष्य योगराज ने कहा की आप सब कुछ करने मैं समर्थ हैं | सिद्धियों के स्वामी हैं | मृत को जीवित करने वाले हैं और विरक्त को मोक्ष प्रदान करने वाले हैं | मेरी इच्छा है की मैं कालदंड का खंडन कर सिद्ध देह में विचरण करने वाले अमरकाय भर्तरिहरी और गोपीचंद का प्रत्यक्ष दर्शन करू | मस्तनाथ ने कहा की यद्यपि आत्मा अमर है तथा अपि योग्सिधान्त में आत्मा के साथ शारीर अमर हो जाता है भर्तरिहरी और गोपीचंद दोनों अमर हैं | मस्तनाथ जी के अनुग्रह से दुसरे दिन सवेरे योगराज को भर्तरिहरी और गोपीचंद का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ | बाबा मस्तनाथ जी द्वारा सूखे वृक्ष को हरा करना और जाट को पुत्र प्राप्ति होना मस्तनाथ जी ने पटियाला राज्य के उचाना ग्राम मैन्कुच समय तक निवास कर लोगों को योगोपदेश दिया , सिद्धों की महिमा और योगसाधना - प्रक्रिया से परिचित कराया | रोहतक मंडल में महम ग्राम के निकट घडी बढ़ी ग्राम में एक सूखे प्राचीन वट वृक्ष के निचे आसन लगाया | एक वृद्ध जाट , धर्मात्मा पुरुष संतानहीनता से वह बहुत दुखी था | उसकी स्त्री भी शरीर से जर्जर हो चली थी | लोगों ने कहा की यदि यह सुखा वट वृक्ष हरा हो जाये , तो जाट भी पुत्र की प्राप्ति कर सकता है | महाराज के आदेश से शिष्यों ने वृक्ष के मूल मैं पानी डाला और वह हरा हो गया , जाट ने उनके अनुग्रह से तीन वर्षों मैं तीन पुत्रों की प्राप्ति की | पाई देवी को शाप देना महाराज रोहतक मंडल के ही भालोट ग्राम से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित कलोई ग्राम मैं पहुँच गए | वहां कुईं पर पानी लेने आई हुई एक सुंदर नवजवान स्त्री ने अपनी सखिओं के साथ मिलकर मस्तनाथ जी के योगी वेश पर हास्यात्मक व्यंग किया | वह हरिसिंह नामक व्यक्ति की पत्नी थी | महाराज ने उसे शाप दिया की तू योगिनी होगी | उस स्थान को नीरस समझ कर महाराज ने निर्जन -जीव जंतु के प्रवेश से अगम खोखर जंगल मैं निवास किया | घर जाने पर हरिसिंह की स्त्री पाई भूतावेश से ग्रस्त हो गई , वह विकृति को प्राप्त हुई | उसके मन में वैराग का उदय हो गया , वह अपने पति पुत्र आदि से सम्बन्ध विच्छेद कर तथा शरीर को भस्म विभूषित कर शिवगोरक्ष मन्त्र को स्मरण करती हुई उसने वन में प्रवेश किया | जब हरिसिंह को पता चला की यह मस्तनाथ के कोप का परिणाम है तो धनुष बाण लेकर उन्हें मारने चल पड़ा | महाराज आसन पर विराजमान थे | अद्रिस्य हो गए कभी दीख पड़ते , कभी अद्रिस्य हो जाते | हरिसिंह ने महाराज से क्षमा मांगी | मस्तनाथ जी ने उसकी स्त्री को योगदीक्षा दी और यह पाई नाथ के नाम से महातपस्विनी योगिनी के रूप में प्रसिद्ध हो गई | बाबा मस्तनाथ का मृग रूप धारण करना खोखरा जंगल मैं ही योगिराज मस्तनाथ जी की कृपा से एक गोपालक की प्रार्थना से मृत गाय के शरीर मैं फिर से प्राण संचार हो गया | इसी प्रकार एक समय महाराज ने रोहतक के झज्जर ग्राम मैं आसन लगाया | महाराज की चरण धूलि से वह ग्राम पवित्र हो गया एक दिन वे छायादार वृक्ष के निचे विराजमान थे की एक सामंत आखेट के लिए उस वनस्थली मैं आया | महाराज ने मृग रूप धारण कर लिया | उसने महाराज पर बाण चलाया और मृग के स्थान पर उसने वट वृक्ष के निचे जटाजूट विभूषित योगी को देखा | महाराज के चरणों पर गिरकर उसने क्षमा मांगी | महाराज ने उसे आत्मज्ञान से संबोधित किया | बादशाह आलम को चमत्कार दिखाना योगिराज मस्तनाथ ने अपनी चरणधूलि से दिल्ली को भी पवित्र किया था | बादशाह औरन्ग्जेब की धार्मिक कट्टरता से हिंदुत्व को भी आघात लगा था | उन दिनों दिल्ली के सिंघासन पर बादशाह आलम विराजमान था | महाराज के दिल्ली पधारने से हिन्दुओं को बहुत आश्वासन मिला और महाराज ने उन्हें अभय दान दिया | महाराज ने दिल्ली में पच कूईयां (पंच्कूपी ) के समीप एक उद्यान मैं आसन लगाया | शाह आलम उनका दर्शन करना चाहता था | उसने महाराज के चरण-देश मैं शाल आदि बहुमूल्य पदार्थ उपहार मैं भेजे | महाराज ने कौतुक मैं ही उनको आग की धूनी मैं डाल दिया | बादशाह ने मंत्री भेजकर कहलवाया की जो वस्तुएं भेजी थीं वे आपके उपयोग मैं नहीं आयंगी उन्हें लौटा दें , बदले में दूसरी वस्तु भेज रहा हूँ | महाराज ने धूनी में जले पदार्थ ज्यों के त्यों नवीन रूप में निकाल कर वापस कर दिए , लोग उनकी योगसिद्धि से चकित हो गए | उन दिनों दिल्ली की स्थिति शोचनीय थी | गुलाम कादिर रूहेला ने शाह आलम को अँधा कर कैद में डाल दिया | १७८८ ई. में इस तरह दिल्ली असहाय हो गई | महाराज ने दिल्ली से प्रस्थान कर दिया | पचोपा गाँव को शाप से नष्ट करना दिल्ली से योगिराज पचोपा ग्राम आये| उस गाँव मैं देविदास नाम का एक व्यक्ति अपने तंत्र-मंत्रात्मक प्रयोग के लिए प्रसिद्ध था | उसने कहा की ऐसे अनेक योगी घुमते है |इनमे सिद्धि नाममात्र को नहीं होती है | उसने योगिराज की निंदा की महाराज मौन थे | उन्होंने श्रद्धालुओं से सामान लेकर गाँव से बाहर जाने का आदेश दिया और कहा की यह गाँव आग लगने से शीघ्र ही जल उठेगा | सिद्ध की वाणी थी | तत्काल सारा गाँव आग में प्रज्ज्वलित हो उठा |
कडाहे में काठ का टुकड़ा डलवाना और उसका स्वर्ण में बदलना एक समय भ्रमण करते हुए योगिराज मस्तनाथ बीकानेर गए | उन दिनों महाराज गजसिंह के पुत्र सूरतसिंह बीकानेर के सिंघासन पर विराजमान थे | महाराज एक यज कर रहे थे , उसमें दूर दूर के संत महात्मा , साधू संत और विद्वान पधार रहे थे | यज्ञ के परिसर से ही महाराज मस्तनाथ अपने शिष्य रूप नाथ के साथ जा रहे थे की उन्होंने दूध से भरा कड़ाहा देखा , उसमें उन्होंने विभूति और काठ का टुकड़ा प्रदान कर रूपनाथ को आदेश दिया की कड़ाहा में डाल दो | इससे यज्ञ क्षेत्र मैं बड़ा कोलाहल हुआ | मस्तनाथ जी ने वन ,में आकर आसन लगाया | राजा इस वृतांत से कुपित हुए और सिद्ध मस्तनाथ को लाने के लिए दूत भेजा | दूत ने कभी मस्तनाथ को देखा और कभी उनके स्थान पर सिंह देखा | राजा ने यह वृतांत जान कर उन्हें आदर पूर्वक राजमहल में बुलाया | उन्होंने महाराज से कडाह में विभूति और काठ का टुकड़ा डलवाने का कारन पूंछा तो योगिराज ने कहा की आप ब्राह्मणों को पायस का भोजन करा रहे थे तो दक्षिणा मैंने देना उचित समझा | कडाह मंगवाया तो उसमें स्वर्ण भरा हुआ था | राजा सूरत सिंह ने महाराज से नाथ योग की दीक्षा ग्रहण की और सेवा में एक ग्राम देना चाहा पर महाराज ने अस्वीकार कर दिया | उनके शिष्य तोतानाथ प्रसिद्ध हुए और सूरत सिंह ने सेवा में एक ग्राम थेडी नामक प्रदान कर बोहर मठ के अधिकार में कर दिया | रूप नाथ की स्त्री को स्वर्ण से भरा मतीरा देना रूपनाथ की विवाहिता स्त्री , जो उनके शिष्य होने के पहिले विवाहिता थी , महाराज का दर्शन करने आई | जीविका के लिए महाराज ने मतिरा दिया , जो बहुमूल्य मोतियों से परिपूर्ण था | महाराज ने उसकी चिंता नष्ट कर दी | बाबा मस्तनाथ जी द्वारा राजा मानसिंह को राजा बनाना महायोगी जलंधरनाथ के कृपापात्र जोधपुर के महाराज मानसिंह को राज्य अधिकारी बनाने में उनके समकालीन योगिराज मस्तनाथ का ही विशेष योगदान था ,क्यूंकि जालान्धरनाथ के प्रति महाराज के हृदय में श्रद्धा रही होगी , लेकिन विशेष रूप से नाथयोगी और नाथ सम्प्रदाय के प्रति उनमें श्रद्धा निष्ठा की जाग्रति मस्तनाथ जी के अनुग्रह के रूप मैं ही स्वीकृत है | मानसिंह के भाई भीम सिंह बहुत कठोर हृदय के थे | उन्होंने मानसिंह को जालोर दुर्ग मैं बंदी बनाकर जोधपुर के राज्य पर अधिकार कर लिया था| मस्तनाथ ने जोधपुर पहुँच कर एकांत मैं आसन लगाया | मानसिंह के दूत के रूप में एक कुंडलधारी दर्शनी योगी ने भीमसिंह को सूचित किया की मानसिंह की रक्षा करने के लिए एक सम्रर्थ योगी आ गए हैं | वे सिद्ध हैं मृतक को जीवन दान देने वाले हैं साथ ही साथ महाराज ने योगबल से भीमसिंह के किसी मुख्य सैनिक को मानसिंह के पास भेजा की भीमसिंह सात दिनों के भीतर राज्य पर अधिकार कर लेंगे आप खजाना सुरक्षित कर राज्य के बहार निकल जाएये | मानसिंह चिंतित हो उठे | उन्हें आकाशवाणी सुनाई दी की आप तीसरे दिन जोधपुर के राजा बन जायेंगे | मानसिंह ने कहा की यह कहने वाले आप कौन हैं जालंधर नाथ हैं मत्स्येंदर नाथ हैं या गोरक्षनाथ हैं हमें दर्शन दीजीये | आप मस्तनाथ तो नहीं हैं मस्तनाथ प्रकट हो गए महाराज ने कहा की इस कोट मैं एक कूप है उसका जल पीजीए , एक अन्न का भंडार है सारी सेना की इसी से तृप्ति हो जाएगी | मस्तनाथ अंतर्ध्यान हो गए | उसके बाद मस्तनाथ ने मंदिर मैं प्रकट होकर जलंधरनाथ के पूजक देवनाथ से कहा की भीम सिंह स्वयं मृत हो जायेगा | मानसिंह से कहना चाहिए | भीमसिंह के मरने पर मानसिंह मस्तनाथ जी के अनुग्रह पर जोधपुर के राजसिंघासन पर आसीन हो गए | सम्पूर्ण राज्य की मानसिंह ने श्रीनाथ जी की धरोहर के रूप मैं स्वीकार किया और मस्तनाथ जी को आदर पूर्वक राजमहल मैं पधारवा कर उनसे धर्म और योगतत्त्व का उपदेश प्राप्त किया | मानसिंह नाथ योग के अद्भुत मर्मज्ञ थे | उनकी श्रीनाथतीर्थावाली रचना विशेष रूप से नाथ सम्प्रदाय मैं सम्मानित है | विवेकमार्तनड के टीकाकार तथा उन्ही के समकालीन और कृपापात्र भीष्म भट्ट ने मानसिंह को सिद्धसिद्धांतत्तत्वज्ञ और श्रीनाथपदामभोजमधुप कह कर सम्मानित किया है | जोधपुर राज पुस्तकालय के एक भाग के रूप में नाथ सम्प्रदाय परक अगणित पुस्तकों का भंडार महाराज मानसिंह की देन है | बाबा मस्तनाथ जी के शिष्य और उनको दिया उपदेश सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी की शिष्य परम्परा बड़ी समृद्ध है | उनके शिष्य घडी नाथ , धाता और रनपत तथा तोता नाथ आदि के नाम विशेष सम्मानित हैं | तोता नाथ भरतपुर क्षेत्र के पिगोरा ग्राम के रहने वाले थे | महाराज का उन पर विशेष अनुग्रह था | बीकानेर राज्य से प्राप्त थेडी ग्राम महाराज ने तोतानाथ को देखभाल के लिए सोंपा था | मस्तनाथ जी ने शिष्यों को उपदेश दिया की आत्मतत्व का ज्ञान प्राप्त करना ही योगसाधना का फल है | व्यव्हार -मार्ग का त्याग नहि कारना चाहिए | सदाचार परक व्यव्हार की सिद्धि में ही परमार्थ सन्निहित है | उन्होंने कहा की आत्मतत्व साकारस्वरूप मायावश सातिशय होता है | वास्तव मैं वह निरतिशय निर्गुण है | बाबा मस्तनाथ जी का महाप्रस्थान एक समय बाबा मस्तनाथ जी महाराज बीघडान गाँव में विराजमान थे | उन्होंने बात ही बात में शिष्य मंडली से अपने महाप्रस्थान की बात बताई की फाल्गुन शुक्ल पक्ष में यह यात्री स्वधाम चला गायेगा | महाराज शिष्यों को उपदेश दे रहे थे की वार्ता के मध्य में अमरकाया सिद्ध योगिराज चौरंगी नाथ ने आकर भेंट की . परस्पर में बातचीत कर अंतर्ध्यान हो गए | योगिराज मस्तनाथ ने पूरे सौ साल की अवस्था में संवत १८६४ वि. की फाल्गुन शुक्ल नौमी को निर्वाण प्राप्त किया |महाराज ने दिव्या देह से प्रकट हो कर आकाश से कहा - में जीवीत हूँ मृत नहीं हूँ | स्थूल देह मात्र से ही मेरा सम्बन्ध विच्छेद हुआ है | अत्यंत सादे ढंग से जमीन में गुफा बनाकर उसमें मेरे शरीर को समाधी दी जाय| उनके आदेश से शरीर को बीघडान गाँव से अस्थल बोहर लाया गया और चौरंगी नाथ जीकी स्थली में ही उन्हें समाधी दी गई | उनके शिष्य तोता नाथ जी ने सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी के समाधी स्थल पर एक मंदिर का निर्माण कराया | मस्तनाथ जी के समाधी स्थल पर फाल्गुन शुक्ल नौमी को प्रत्येक वर्ष मेला लगता है | अस्थल बोहर का कण कण उनकी योगसिद्धि का परिचायक है | योगिराज मस्तनाथ अमर हैं उनकी पवित्र कीर्ति अमर है आदेश आदेश आदेश योगिराज श्रीयुत महंत चांदनाथ जी योगी
योगिराज श्रीयुत महंत चांदनाथ जी योगी
महान कर्मयोगी योगिराज श्रीयुत महंत चांदनाथ जी योगी जिनके चरण कमल का स्मरण सम्पूर्ण बिघन समूह को नस्ट कर देता है मै सरस्वती का ध्यान लगा कर तथा सिद्ध योगी बाबा मस्तनाथ जी का स्मरण कर सिद्ध बाबा मस्तनाथ स्वरूप योगीसिद्ध बाबा महंत चाँद नाथ जी योगी की जीवन लीला का संछिप्त वर्णन आप लोगों के सामने कर रहा हूँ , भगवान गणेश माँ सरस्वती मेरे इस छोटे से परयाश को सफल करें | पूज्य महंत चांदनाथ योगी जी - जन्म एवम शिक्षा दिल्ली के बेगमपुर गाँव मैं पिता श्री मोहर सिंह तथा माता श्रीमती चंपा देवी के संपन्न किसान परिवार मैं २१ जून १९५६ मैं एक दिव्या बालक का जन्म हुआ | सात भाई बहिनों मैं सबसे बड़े बालक की बुद्धि बचपन से ही कुशाग्र थी वह धर्म कर्म मैं रुचि रखने वाला तथा तेजस्वी था |इस बालक का नाम इनके माता पिता ने चाँद राम रखा | वही बालक बड़ा होकर महंत चाँद नाथ जी के नाम से जाना गया | जिसने अपनी विशिष्ट कार्य शैली एवम विशिष्ट व्यक्तित्व के द्वारा श्री बाबा मस्तनाथ जी की परम्परा को आगे बढाया एवम मठ का संरक्षक बना | महंत चाँद नाथ जी ने हिन्दू कॉलेज दिल्ली से बी.ए. (आनर्ष) की उपाधि प्रथम श्रेणी मैं प्राप्त की , स्नातक के पश्चात् २१ जनवरी १९७८ महा चौदस के दिन महंत श्रेयोनाथ जी से दीक्षा ग्रहण की तथा उनके आदेश अनुसार थेहडी हनुमानगढ़ जाकर वहां का कार्य भार संम्भाला तथा ७ जनवरी १९८५ तक वे इसी क्षेत्र मैं कार्य करते रहे उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा भी डॉक्टर की मानद उपाधि प्रदान की गई |मेरे गुरुदेव की शिक्षा ओउर उपलब्धियां - गुरुदेव सिद्ध बाबा महंत चाँद नाथ जी योगी
२१ जून १९५६ मैं गाँव बेगमपुर मैं जन्म|
१९७७ मैं बी ए (आनर्स ) की उपाधि |
२१ जन १९७८ नाथ सम्प्रदाय की दीक्षा |
२१ मई १९८४ रस्म चादर प्रक्रिया |
३० मई १९८४ को कानूनन वसीयत |
९ जन १९८५ गद्दी नशीन महंत |
१९८६ मैं गुरु समाधी स्थल का निर्माण |
१९८७ मैं सिविल रोड पब्लिक स्कूल |
१९८८ मैं आवासीय पब्लिक स्कूल |
१९८९ मैं बाबा मस्तनाथ सभागार |
१९९० मैं शिव मंदिर की स्थापना |
१९९१ मैं प्राचीन शिव मंदिर का जीर्णोधार |
१९९२ मैं थेहडी डेरा मंदिर |
१९९३ मैं चक ७ एल एल का निर्माण |
१९९४ मैं बद्री नाथ धर्मशाला निर्माण |
१९९५ मैं एम् बी ए कॉलेज की स्थापना |
१९९६ मैं फार्मेसी एवम डी एड कॉलेज |
१९९७ मैं डेंटल कॉलेज जी स्थापना |
१९९८ मैं फिजीयोथेरेपी एवम मॉडर्न साइंस|
१९९९ मैं संस्कृत कॉलेज की स्थापना |
२००० मैं नर्सिंग कॉलेज की स्थापना |
२००१ मैं कन्या छात्रावास की स्थापना |
२००२ मैं सिद्ध बाबा रणपत मान्धाता समाधी स्थल का निर्माण |
२००३मैं रैबारी धर्मशाला का निर्माण |
२००४ मैं शिक्षा रतन एवम बहरोर बिधायक |
२००५ मैं चिकितसा रतन एवम छात्रावास न. २ |
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