देवासी समाज के मार्गदर्शक श्री जेताराम जी महाराज
जेतेश्वर महाराज की कथा:- राजस्थान की तपोभूमि में कई संत महात्मा हुए है, कई अवतार ऒर लोक देवताओं की पुण्य भूमि है, इसी तपोभूमि पर गांव काठाड़ी "जिला बाड़मेर राजस्थान" में देवासी समाज में एक महान संत अवतरित हुए, जेतरामजी महाराज जिन्हें देवासी समाज का मार्गदर्शक कहा जाता है, विक्रम सवंत 1812, वैशाख सुदी 14 रविवार के दिन श्रीमती ओखीदेवी की कोख से एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ, पुत्र के जन्म होने पर पिताजी उमाजी गेलोतर को अपार हर्ष हुआ, गांववाशियो के घर घर मे खुशिया छाई, मंगल गीत और ढोल नगारे बजने लगे, घर घर गुड़ बटने लगा।
जेतरामजी बचपन से ही भक्ति में लीन रहते थे, संसार की वस्तुओं का मोह नही था, बालपण से ही घर के कार्य मे हाथ बटाने लगे, किशोर अवस्था मे बालोतरा में मालियों की बाड़ी की रखवाली करते थे, उसके बदले में जो धान मिलता था, उसे रोजाना कबूतरों को चुगा देते थे, भक्ति में लीन रहते, एक बार सिणधरी जाते समय कालूड़ी गांव के पास आये तो उन्हें प्यास लगी, पानी पीने के लिए गांव के पिचके पर पानी पीने गए, तो गांव वालों ने उन्हें पानी पिलाने से मना कर दिया, तो उन्हें मन मे बहुत दुख हुआ, इससे नाराज होकर जेताराम जी ने श्राप दे दिया की पिचके का पानी खारा हो जायेगा, वहाँ से आगे चलकर गांव भूका वेरी पर जाकर बावड़ी खोदकर पानी पिया।
कुछ दिनों बाद आप सिणधरी आ गए, वहाँ पर मोताजी माजन के वहा हाली रहकर गाय चराने लगे, साथ मे परमात्मा की माला फेरते हुए भक्ती करते रहे, इस उपरांत दोनाजी देवासी की बेटी अगरीदेवी से आपकी सगाई हुई, परम्परा के अनुसार जेताराम जी दोनाजी के यहाँ पर घर जवाई आ गए, वहाँ आकर आप भेड बकरियां और ऊँट चराने लगे, लेकिन भक्ति में लीन रहने वाले जेतारामजी दिन में भी पेड़ो के नीचे समाधि लगाकर शिवजी का ध्यान करते थे, और साथ मे नाडी निम्बली की खुदाई भी करते थे।

सिणधरी के रावलों से अपने कुटिया "आश्रम" के लिए आपने जमीन मांगी, लेकिन रावल गोदरसिंह जी ने मना कर दिया, तो रावल साहब को भी आपने चमत्कार दिया था, वहाँ से आगे चले आगे जेतरामजी महाराज की धर्म बहिन कवरीबाई कांचेली चारणी गांव डातेरी जो तपस्वी थी, उसने अपनी कुटिया "आश्रम" तपस्या करने के लिए दिया, उसी जगह आपने कठोर तपस्या कर कई जीवो का कल्याण किया, उसके बाद रावल साहब ने आकर आपकी तपस्या से प्रभावित होकर आपको अपने वहाँ आश्रम के लिए जमीन दी।
जहाँ जेतरामजी महाराज ने अपना आश्रम बनाया, यहाँ पर आपने कई वर्षों तक तपस्या की, जिसे आजकल जेतरामजी की प्याऊ के नाम से जाना जाता है, यही पर जेतरामजी ने जालकी डाली से दांतुन कर वही पर रोप दिया, जो आज एक बड़े पेड़ के रूप में भी मौजूद है, अंत तक भक्ति व तपस्या करते हुए जेतरामजी महाराज देवलोक सिधार गए, आज भी जो सच्चे मन से ध्यावे उसकी मनोकामना पूर्ण होती है, यह सम्पूर्ण जानकारी रावजी व साखी के अनुसार दी गई है।
लेख:-सुजाराम देवासी साँफ़ाड़ा जालौर
विसेष सहयोग ,,, देवासी समाज गुरुधाम जेतेश्वर धाम भलखाडी
1 टिप्पणियाँ
Jai ho jettram ji maharaj ki
जवाब देंहटाएंPlease do not enter any spam link in the comment box.