इतिहास किसी भी देश और जाति के उत्थान की कुंजी है। किसी भी देश तथा समाज के उत्थान व पतन तथा वहाँ के ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य, एवं संस्कृति का ज्ञान हमें इतिहास के द्वारा ही मिल सकता है। हमें अपने पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों की जानकारी इतिहास के माध्यम से ही मिल सकती है। जिस जाति के पास अपने पूर्वजों का इतिहास नहीं उसे प्राय: मृत समझा जाता है। अर्थात् जिस व्यक्ति को अपने इतिहास की जानकारी नहीं वो इतिहास का निर्माण नहीं कर सकता। वास्तव में इतिहास ही ज्ञान की कुंजी व ज्ञान का विशाल भंडार होता है। इतिहास वह पवित्र धरोहर है जो जाति को अंधकार से निकाल कर प्रकाश की और ले जाती है। हर व्यक्ति दूसरों से तुलना करके अपने आप को श्रेष्ठ प्रमाणित करने में गौरव महसूस करता है और उसके लिए इतिहास से बढ़कर कोई आधार नहीं हो सकता।
किसी जाति को जीवित रखने तथा विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए इतिहास से अधिक कोई प्रेरणा का स्त्रोत नहीं हो सकता। इसलिए साहित्य जगत् में इतिहास को भारी महत्व दिया गया है। इतिहास पूर्वजों की अमूल्य निधि है और वही भटके हुए मनुष्यों को मार्ग दिखाता है। किसी भी देश या जाति का उत्थान और पतन देखना हो तो उस देश या जाति का इतिहास उठाकर देख लें। यदि किसी देश या जाति को मिटाना है तो उसका इतिहास मिटा दें वह देश या जाति स्वत: मिट जायेगी। इतिहास के अभाव में वह जाति या देश अपना मूल स्वरूप ही खो बैठेगी, वह भटक जायेगी। पहले जहाँ चार वर्ण थे वहाँ भारत में आज लगभग पौन चार हजार जातियाँ हो गई।
पिछड़ी हुई जातियों का इतिहास नि:सन्देह गौरवशाली रहा है अतीत के पन्नों को बटोर कर पिछड़ी हुई जातियों में मानव की महत्ता, स्वाभिमान तथा स्वगरिमा जागृत करने की आल ज्यादा जरूरत है। दूषित वर्ण व्यवस्था के कारण जिन लोगों पर इतिहास और साहित्य रचना का दायित्व था उन लोगों ने भी पिछड़ी जातियों के प्रति कभी भी उदारता का परिचय नहीं दिया। आज हम इतिहास को देखते हैं तो शासकों की नामावली तथा शौर्य गाथाओं के सिवाय कुछ नहीं मिलता । जिन लोगों पर यह दायित्व था उन्हें इतिहास में सभी वर्गों और जातियों को स्थान देना चाहिए था मगर संकीर्णता और पक्षपात। राज्यों के उत्थान और पतन में शासक वर्ग के साथ-साथ अन्य जातियों का भी त्याग और बलिदान रहा है। मगर इतिहास के ठेकेदारों ने उन्हें समुचित स्थान देना ठीक नहीं समझा। आज जब पिछड़ी जातियों के लोग अपने पूर्वजों के गौरवपूर्ण इतिहास को कहीं से भी खोज कर सामने लाते हैं तो उसमें गौरव के साथ-साथ आक्रोश पैदा होता है कि इतने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों को इतिहास से क्यों विलोपित किया गया ? यह विभाजन जाति विभेद के आधार पर नहीं किया गया यह चार वर्ण इस प्रकार है : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । वेदों में कहा गया है की उस विरट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिये, सिने से वैश्य, और कमर से नीचे के भाग से शुद्र उत्पन्न हुए ।
रबारी जाति का परिचय
Introduction to Rabari Community
રબારી જાતિ નો પરિચય અને ઇતિહાસ
राईका कौन था?
रबारी का इतिहास क्या है?
देवासी जाति कौन सी होती है?
देवासी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई?
What caste is Rabari?
What is the history of Rabari caste?
रबारी रायका सिंधु घाटी सभ्यता की देहाती प्राचीनतम खानाबदोश जातियों में से एक है। यह एक क्षत्रिय कौम है। रबारी समाज के लोग निडर, साहसी, हष्ट पुष्ट, बेहद ईमानदार एवं वफादार होते है। इनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन रहा है, यह ऊंटपालक जाति है। यह मुख्यतः ऊंट के अलावा कालांतर में गाय, भेड़, बकरी का पालन करते है। सिंधुघाटी सभ्यता के समय मुख्य व्यवसाय सभी जातियों का खेती एवं पशुपालन ही रहा है। 19 वीं शताब्दी के बाद लगभग जातियां पशुपालन व्यवसाय से विमुख हो गयी है। रबारी समुदाय 19 वीं एवं 20 वीं शताब्दी तक साधन संपन्न वाली जातियों में एक थी। रबारी जाति को रैबारी, रायका, राईका, देवासी, राहबारी, ऊंट पालक जाति के नाम से भी पहचाना जाता है। यह जाति भारत के उतर-पश्चिम में 6 राज्यो मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में निवास करती है। इसके अलावा पड़ोसी देश पाकिस्तान के सिंध प्रांत नगरपारकर में भी निवास करती है। भारत मे रबारी जाति जनसंख्या लगभग एक करोड़ के आसपास है। पाकिस्तान में भी इनकी संख्या लगभग आठ हजार करीब है।
राजस्थान के जोधपुर संभाग में पाली सिरोही, जालोर, बाड़मेर और गुजरात के बनासकांठा, पाटन, मेहसाणा, सौराष्ट्र में रबारी समाज बहुत ज्यादा संख्या में निवास करता है। हरियाणा राज्य के भिरड़ाना (फतेहाबाद) कैथल और पंजाब में नाभा, पटियाला, भिण्डरीया में रबारी समाज काफी संख्या में निवास करता है। मध्यप्रदेश में खजूरिया (उज्जैन) व राजगढ़ और उत्तरप्रदेश में जटारी रबारी समाज की बड़ी बस्ती है।
उत्पति और इतिहास (Origin and history of Rabari community)
शोधकर्ताओं एवं इतिहासकारों का मानना है कि रबारी शब्द का उदगम रहबर शब्द से हुआ है। रहबर एक फ़ारसी शब्द है-जिसका मूल अर्थ है- पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक, रास्ता दिखाने वाला होता है। रबारी समाज के लोग अपने पारम्परिक ज्ञान के कारण अच्छे पथप्रदर्शक माने जाते है। जिसका एक उदाहरण रणछोड़ भाई रबारी भी है, जो भारतीय सेना का पागी रहा। रणछोड़ भाई रबारी 1965 एवं 1971 के युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई। पागी एक स्थानीय शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ पदचिन्हों का जानकार या मार्गदर्शक होता है।
रबारी अपने पशुओं के चारे की तलाश में साल के आठ महीने तक एक प्रांत से दूसरे प्रांत में घूमते है। अधिकांश अवधि घर से बाहर (राह-बारी) बिताते है, इसलिए राहबारी का अपभ्रंश शब्द रबारी है। चारण-भाट एवं रावों की वंशावली में रायबारी शब्द का जिक्र आता है।
किवदंती एवं दंतकथा
राव एवं चारण-भाट वंशावली के अनुसार एक किवदंती प्रचलित है।
रबारी जाति के लोग अपने को मां पार्वती और भगवान शिव की संतान मानते है। उनका मानना है कि भगवान शिव और माँ पार्वती ने उन्हें ऊंट की रखवाली करने के लिए बनाया है। भगवान शिव और पार्वती जब कैलास पर्वत पर थे, तो मां पार्वती ने एकेलापन में बोरियत (ऊबना) महसूस किया उन्होंने वहां पड़ी गीली मिट्टी की कुछ आकृति बनाना शुरू कर दिया, वह मिट्टी की आकृति ऊंट (केमल) जैसी थी, मां पार्वती को यह आकृति बहुत विचित्र ओर सुंदर लगी। जब भगवान शिव अपनी तपस्या से उठे तो उनकी नजर माँ पार्वती पर पड़ी। माँ पार्वती आग्रह किया कि -हे प्राणनाथ इस मिट्टी की आकृति में प्राण डालो। भगवान शिव ने अपने भभूत (Ash) से ऊंट की आकृति में प्राण फूंके जिससे धरती पर ऊंट अस्तित्व में आया। ऊंट की रखवाली के लिए भगवान शिव ने अपने हाथ की चमड़ी/चामड़ के भभूत से एक मनुष्य को बनाया। शिव की भुजा (हाथ) के भाग से बना होने के कारण रबारी क्षत्रिय कहलाये। वह पहला मनुष्य चामड़/सामड रबारी था। चमड़ी से बना होने के कारण उसका नामकरण शुरुआत में चामड़ था, फिर आगे चलकर अपभ्रंश होने के कारण सामड हो गया ऐसा रबारी समुदाय के लोगों का मानना है। आज भी रबारी समाज मे सामड नाम की एक गोत्र है जिसे प्रथम गोत्र होने का ऊंच दर्जा प्राप्त है।
रबारी जाति के लोगों का मानना है कि भगवान शिव व मां पार्वती ने ऊंट बनाया उस समय ऊंट के पांच पैर होते थे। जिससे ऊंट को चलने-फिरने ओर दौड़ने में काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता था। एक दिन सामड रबारी ने ऊंट की व्यथा भगवान शिव को बताया । जिससे भगवान शिव ने ऊंट के पांचवे पैर को अपने हाथ से ऊपर की ओर धकेल दिया जिससे ऊंट के ऊपर की ओर कूबड़ उभर आया तथा नीचे की तरफ नाभि/तड़ी/ईडर जैसी आकृति बन गयी। ऊंट के नाभि के पास आज भी पैर जैसा निशान आज भी मौजूद है। यह विकृति निवारण होने के कारण ऊंट चलने फिरने और दौड़ने लग गया।
भगवान शिव और पार्वती ने करवाई थी सामड की शादी
सामड रोजाना ऊंट चराने के लिए हिमालय के जंगल मे जाता था, एक दिन उसकी नजर झील में नहा रही स्वर्ग की अप्सराओं/परियों पर पड़ी। सामड कोतुहल के कारण उनके कपड़े उठा लिया करता था, इससे नाराज होकर अप्सराओं ने सामड रबारी की शिकायत भगवान शिव-पार्वती से की। मां पार्वती ने कपड़े लौटाने पर एक शर्त रखी कि आपमें जो अप्सरा सामड रबारी से शादी करेगी, आपके वस्त्र वापिस कर दिए जाएंगे। उन स्वर्ग की अप्सराओं में से राय नाम की अप्सरा शादी करने को राजी हुई। राय अप्सरा से शादी करने के कारण आगे चलकर उनकी संतानों को कालांतर में "रायका" के नाम से जानने लगे।
सामड रबारी और राय अप्सरा और उनके पुत्रो को भगवान शिव ने अपार धन संपदा टोला( ऊंटो का झुंड) के साथ विदाई दी। रबारी अपने कुटुम्ब परिवार के साथ पंजाब, हरियाणा, मथुरा, गोकुल, राजस्थान और गुजरात, सिंध प्रांत, मध्यप्रदेश मे फेलते चले गये। एक लंबा समय इस समुदाय ने राजस्थान के जैसलमेर में भी बिताया है। आज भी रबारी अपना मूल वतन जैलसमेर को मानते है लेकिन किसी घटना के चलते इस समुदाय ने जैसलमेर को त्याग दिया, आज भी रबारी समुदाय के लोग जैलसमेर के पानी को हराम मानते है, वहाँ वो रहना और रुकना तक पसंद नही करते। इस घटना का जिक्र में अगले भाग में करूँगा।
गुजरात प्रान्त के रबारीयो के लिए मालधारी शब्द का इस्तमाल भी करते है, माल का अर्थ "ढोर या पशु" से है धारी का अर्थ "धारण करने वाला या रखने वाला" मालधारी होता है। मालधारी का प्रयोग अन्य जातियां जैसे, अहीर, चारण, भरवाड़ आदि जातियां भी करती आयी है। मालधारी कोई जाति शब्द नही है इसकी तुलना पैसे/व्यवसाय समूह के रूप में की है।
इसी प्रकार देसाई सूचक शब्द भी एक पदवी का नाम है, राजा-महाराजाओं और बिर्टिश काल में कुछ गांवों में मुखिया या जागीदारी दी जाती थी, ये लोग किसी भी जाति के हो सकते थे जिन्हें देसाई पदवी के नाम संबोधन किया जाता था।
कुछ इतिहासकार रबारी समुदाय को गड़रिया, पाल, हिरावंशी, भरवाड़, कुर्मी , कुरबरु, गडरिया, गाडरी, गडेरी, गद्दी, बधेल, बंजारा, आदि जातियों से जोड़कर देखते है, या तो उनको इतिहास की समझ नही है या वो अल्पज्ञानी है, रबारी समुदाय इन जातियों से भिन्न है, रीतिरिवाज, रहन-सहन, खान-पान, शादी-विवाह, संस्कृति में रात-दिन का अंतर है।
16 टिप्पणियाँ
NICE
जवाब देंहटाएंNICE
जवाब देंहटाएंएक बार माता पार्वती ने शिवजी को कहा की आप जब भी तप करने चले जाते हो में अकेली पड जाती हु मुझे कोई प्राणी बना दीजिये जिनसे मेरे समय गुजरे तब शिवजी ने ५ पैर वाला उट बनाया जो माता के आजू बाजु घुमने लगा और पाच पैर की वजह से दूर नहीं जा सकता था तब माता पार्वती के इच्छा अनुसार उट को चराने हेतु एक पुतला बनाया और उसमे प्राण फुकने से वो पुतला बालक बन गया और वो उट को चराने लगा बालक थोडा बड़ा हुवा तो उसमे कोई विकार नहीं था वो नंगा घूमता था तो माता को लगा इनको एक वस्त्र पहेना दू तो उस बालक को धोती पहेनाई पर वो ठीक से पहन नहीं सकता था तब माता ने उनको बोला तू कोई भी राह में नहीं हे तू राह के बहार हे इस लिए तू राह्बारी हे कुछ समजता नहीं हे फिर शब्द अपभ्रंश होके रबारी बन गया उनकी शादी स्वर्ग की अपशरा राय से कर दी जिनसे पैदा हुवा सब राइका बन गया और अब उट को दूर दूर चराने से रबारी थक जाता था तब माता ने अपने हाथोसे उट का एक पैर ऊपर गडा दिया एसे उट एसा विकृत लगता हे पर माता के आशीर्वाद से वो रेत का राजा पशु बन गया और रबारी उनको दूर दूर चराने लग गया एसे शिवजी और पार्वती माता ने रबारी को उत्पन किया था इस प्रकार हवी थी रबारी की और राइका की उत्पति ये माता की चरज में वर्णन मिलता हे जो शामवेद मेंसे लिया गया हे
जवाब देंहटाएंअशोक वाघेला रबारी द्वारका ९९२४०६४२०१
thanks for your article ashok ji
हटाएंTamil Nadu me DEWASI ki name se jane jate hai 9080762975
जवाब देंहटाएंअति सुंदर अति सुंदर आपको धन्य हे
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रेबारी समाज है
जवाब देंहटाएंRayka is real Kshatriya
जवाब देंहटाएंRaibari kshetriy rahein hai our hamaare purvajon ne Anek Rajaon ke sath yuddh lada hai.
जवाब देंहटाएंPar Afsos Aaj unhein kam log hi jaante hai.
padhar rabari kaise bane and unka koi sur vir
जवाब देंहटाएंदेवासी समाज आज भी अपनी Maryada व धर्म पर सच्चाई का उदाहरण है मातृभूमि के प्रति इस कौम की लग्न देखकर हर भारतीय का हृदय गर्व से छोड़ा हो जाता है jai maldhari samaj
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंJay Rebari
जवाब देंहटाएंJai ho rabari samaj ki
जवाब देंहटाएंदेवासी को दैवो का
जवाब देंहटाएंवंशज भी माना जाता है
रबारी समाज जैसलमेर को पानी पिना हराम केसे मानते हैं थोड़ा इत्यास बताओ
जवाब देंहटाएंPlease do not enter any spam link in the comment box.