इटली का इन्जो राईका वेश में बिता चुका है 33 बरस
Two foreign tourists Raika lifestyle and culture lovers
दो विदेशियों को राजस्थान के राईका समुदाय की वेशभूषा में देखकर हर किसी को अचम्भा होता है, सबसे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब टीवी पत्रकारों और फोटोग्राफरों ने पुष्कर मेले के दौरान अंग्रेजी में उसे संबोधित किया लेकिन उसने हिंदी में जवाब दिया और उन सब हैरान कर दिया, ऎसा लगा कि जैसे राजस्थान के किसी गांव के एक राईका दम्पत्ति से बात कर रहे है। टीवी पत्रकार ने ज्योति यानि एन्जो से पूछा इतने साधन सम्पन और आधुनिक लोग होकर भी आपने इस कठिन जीवन को क्यों चुना उसने प्रतिउत्तर में जवाब दिया "यह दिल की बात है" (मतलब यह मन का नहीं दिल का सवाल है) इसको आप नहीं समझोगे?। उनका असाधारण ज्ञान तथा तौर- तरीका से पता चलता है कि उन्होंने राईका और गुर्जर संस्कृति को दिल से जीया है।
एन्जो दे मार्टिनो से ज्योति का सफर :-
ज्योति का मूल नाम "एन्जो दी मार्तीनो" है, लेकिन गांव के लोग इन्हें ज्योति कहते हैं। उनको इतना टेढ़ा और लम्बा नाम समझ में नहीं आता।ज्योति इटली के "सिसिली टापू" के रहनेवाले हैं। इनके पिता वहाँ मास्टर थे। अब रिटायर हो चुके हैं। कहते हैं इटली में गरीबी है, पर फिर भी वहाँ भिखारी गाड़ी में घूमता है। उधर महँगाई भी बहुत है। इटली में ज्योति के माँ-बाप रहते हैं।
इटली में रहने वाले एन्जो दे मार्टिनो को बचपन से कुछ हटकर वास्तविक जीवन बिताने की चाह रही है। उसके मित्रो को डिस्को क्लब, तड़क - भड़क जीवन शैली पसन्द थी तो ज्योति को धार्मिक व सरल जीवन। इसके चलते वह धीरे धीरे भारतीय साहित्य व किताबे पढ़ने लगा। आयु बढ़ने पर भारत आने की इंछा तीव्र होती गयी। बात वर्ष 1990 की है जब ज्योति भारत पहुँचे ज्योति सबसे पहले महाराष्ट्र गए, वहां का पहनावा देखा, पहनना सीखा, कोलकाता गए, वहां के लोग पसंद नहीं आए। बेलगांव में रेलवे कॉलोनी में किसी से तमिल, अंग्रेजी और हिन्दी सीखी। पुष्कर में एक ठाकुर जी के घर रहकर, बच्चों से हिन्दी सीखी। शुरू में 10-15 दिन रहे फिर जैसलमेर घूमने गए, वहाँ भी हिन्दी सीखने की कोशिश की। जो कुछ एन्जो मतलब की ज्योति ने किताब में पढ़ा वही वास्तविकता में घटित होते देखा जिज्ञासा बढ़ती गयी।
ज्योति बताते है :- 6 महीने भारत में रहने का 'वीजा' मिलता है। उसके बाद ये दोनों कभी इटली और कभी नाशी के घर स्वीडन जाकर 6 महीने रहते हैं और फिर राजस्थान के लिए वापस चल पड़ते हैं। ज्योति शुरुवाती दौर गुर्जर समुदाय के साथ बिताया फिर पुष्कर में राईका समुदाय से मिला तो, एक राईका ने ज्योति से पूछा "आप गुर्जर हो या राईका" तो ज्योति ने बताया "में ना गुर्जर हूं और ना राईका" में गोरा लोग हूँ। गुर्जर और राईका का पहनावा (वेशभूषा) काफी मिलता जुलता है। ज्योति ने बताया एक राईका ने मजाक में कहा "मेरे साथ टोला (ऊँटो का झुंड) में चलोगे" मेने कहा हाँ चलूँगा। मेने उनके साथ 12 दिन का रास्ता तय किया तब उनको विस्वास हो गया की ज्योति और नाशी हमारे लोग है और प्रेमभाव हो गया। तब से आज तक में उनके साथ रहता हूँ। हम उनकी संस्कृति को सिखते है। शुरुवात में ज्योति पशुपालन से जुड़ा ज्योति बताता है यह आपकी संस्कृति की बात नहीं है हमारी भी संस्कृति है में यूनानी जाति हूँ सिकन्दर माल वाले जो हमारे ख़त्म हो गया हमारे देश में और इधर ख़त्म हो रहा है। ज्योति का जन्म भले ही इटली देश में हुआ, लेकिन उसे दशको पहले रास आया राईका जीवन और ग्रामीण जीवन शैली। इसी चाह में वह पुष्कर में जा बसा। ठेठ ग्रामीण लुक में वह पिछले 33 वर्षो से यहाँ रह रहा है। बचपन से ही उसे भौतिक जीवन की बजाय देशी या यूँ कहे ग्रामीण जीवन रास आया और अब इसी जीवन में जिंदगी रम चुकी है।
सिर पर लाल एवं सफेद पगड़ी, ऊपर के अंगो को ढकती अंगरखी (बिना बाहों के कुर्ते जैसा वस्त्र), कानों में चांदी की बालियां, हाथ में कड़े और अंगुलियों में अंगूठियां, गले में काली डोरी में माता का लॉकेट, लांग वाली धोती, पैरों में मोटे चांदी के कड़े, और कंधे पर शॉल, गले में मालाये, कंधे पर लटकता थैला (पावरी), कन्धे पर डोरी में बंधा पीतल का लोटा और हाथ में मोटी सी लाठी, पैरों में चमड़े की गांव की मोजड़ी पहनते हैं। साधारण चेहरे पर असाधरण रूप देती चमकती आँखे, संतोषप्रद जीवन की मुस्कान, भूरे रंग की दाढ़ी, लंबी मूंछे, चमकते दांत, बस एकदम पारम्परिक राईका जाति जैसा लिबास और ऊंटो के संरक्षण में समर्पित जीवन, यूँ कहे तन यूरोपीय और मन भारतीय। ज्योति ने बताया कि वह साफा बाँधने के 10 तरीके जानते हैं और हरियाणा की, कर्नाटक की एकलांगी, तीन लांगी, कुलांगी और मराठी धोती भी बांधना जानते हैं। ज्योति से पूछा कि ये इतना बड़ा भारी साफा सर पर पहनते हो, भारी नहीं लगता क्या? तो बोले-शुरू में लुंगी को सर पर लपेटता था, फिर 2 मीटर का हल्का, बारीक कपड़े का साफा और फिर 4 मीटर का साफा बांधना शुरू किया। फिर धीरे धीरे आदत पड़ गई, अब कुछ भी भारी नहीं लगता बल्कि ये तो हैलमेट है, लड़ाई- झगड़ा के वक्त बचाव के लिए है। " पूछने पर ज्योति ने बताया "मैं राईका और गुर्जर" लोगों के साथ रहना पसन्द करता हूं, मैं उनके साथ पशु चराता हूं, पशुओं की देखभाल करता हूं। एक बार मैंने भी एक ऊंट खरीदा था, उसे 2 माह रखा, कई गांव घूमा, जब वापस लौटने का समय आया तो उसे बेचना पड़ा। गांवो में राईका जीवन शैली इतना रास आया की ज्योति ने अपनी जिंदगी इसमें बसर करने का निर्णय कर लिया।
मिला नेशी का साथ :-
राईका जीवन शैली को अपनाने और इसे व्यवहार में जीता देखकर स्वीडन की युवती "एलिन बॉल्मग्रेन" यानि कि "नेशी" भी खासा प्रभावित हुई। नेशी का मूल नाम "एलेन बोल्मग्रेन" है, लेकिन गांव में वह नेशी व नाशी के नाम से पुकारी जाती है। भारत घूमने आई नेशी को भी सादगी व सच्चाई से भरा जीवन पसन्द था वह इसमें जीवन जीना चाहती थी। जब ज्योति पर नजर पड़ी तो नेशी भी खासा प्रभावित हुई और तय कर लिया की वह राईका जीवन शैली अपनाएगी। इस तरह दोनों ने पुष्कर में रहने का मन बना लिया। इसके बाद से देशी लिबास में ये दोनों विदेशी पुष्कर में ही राईका शैली में जीवन यापन करने लगे। समय-समय पर आयोजित होने वाले पर्यटन मेलो में भी आकर्षक का केंद्र बनने लगे। हालांकि अब नेशी ने सन्यास ले लिया है।
गोरा रंग, लम्बा किताबी चेहरा, छोटी परन्तु आकर्षक आंखें, छोटी नाक, इकहरा बदन और उस पर काले रंग की लाल चुनरी की छपाई वाली गरम ओढ़नी, लाल रंग की पैचवर्क और कांच के काम की कांचली। उसके साथ नीले रंग की कुर्ती और काला लहंगा। माथे पर चांदी कीे लड़ के साथ चांदी का बोरला, गले में बारीक मोतियों की माला, काले डोरे में डला हनुमान जी और दूसरे काले डोरे में चांदी का माता का ताबीज, हाथों में चांदी के सुन्दर कड़े और नॉरियल की लकड़ी पर चढ़ी चांदी के पतरे के कड़े, उंगलियों में चांदी के छल्ले और पैरों में मोटे- मोटे चांदी के कड़े-यह सब पहनकर 32 वर्षीय नाशी (एलेन) जब चलती हैं तो कमर में लटकते घुंघरू वाले फुंदने छम-छम बजते हैं तो लगता है कोई दुल्हन आ रही है।
बुजुर्गो से सीखती हूँ :-
Raika Culture ke Diwane
नाशी एकदम हमारी तरह हिन्दी बोलती हैं और बड़ी मधुर और धीमी आवाज में बोलती हैं। पत्रकार ने नाशी से चाय पीने के लिए पूछा तो कहने लगी "मैं चाय नहीं पीती, छाछ पीती हूं।" खाने में क्या खाना पसन्द करते हैं तो पूछने पर बोली "मांसाहारी खाना मैंने 10 साल से छोड़ दिया और ज्योति ने पिछले 20 साल से मांसाहारी खाना नहीं खाया। हम दाल सब्जी खाते हैं, हम खूब तेज मसालेदार खाना भी खा लेते हैं। अब गांवों में रहकर तो आदत हो गई है, मिर्ची नहीं लगती। "नाशी से उसकी दिनचर्या पूछी तो बताया "सुबह जल्दी उठना पड़ता है क्योंकि गांव में लोग देर तक नहीं सोते। उठकर नहा-धोकर औरतों के साथ काम करवाती हूँ। मुझे गाय-भैंस का दूध निकालना भी आता है, गोबर के छाने भी थापती हूं, जानवरों की सानी करती हूं। मैं रोटी-सब्जी भी बना लेती हूं। "खाली समय में क्या करती हो? तो नाशी ने बताया ""बालों में बांधने की डोरी, कमर में बाँधने की डोरी, कांचली" बांधने की डोरी बनाना सीखती हूं। मैंने जो कांचली पहनी हुई है, ये मैंने खुद सिली है और ये कांचली की डोरी, इसके फुंदे, मोती की लड़ी और ये कसना, सब मैंने खुद सीखकर बनाया है। "नाशी कहती हैं कि "मैं बुजुर्ग औरतों से काम करना सीखती हूं क्योंकि ये पीढ़ी मर जाएगी तो ये काम भी खत्म हो जाएगा। उसका इतना अनुभव किसी न किसी को तो सीख लेना चाहिए। "आज ज्योति हिन्दी भाषियों से भी अच्छी हिन्दी बोलते हैं। ज्योति कहते हैं "नाशी से अकेले में भी बात करता हूं तो भी हिन्दी ही बोलता हूं। "नाशी के साथ घूमने में कोई परेशानी तो नहीं होती? तो ज्योति ने कहा कि "कभी कभी झंझट हो जाता है"। मैंने नाशी को कह रखा है कि जहां ऎसा लगे, वहां घूंघट डाल लिया करो। लेकिन एक बार तो एक शैतान लड़के ने अचानक नाशी का घूंघट उठा दिया। मैं डंडा लेकर उसके पीछे भागा और बहुत दूर तक उसका पीछा किया, उसके बाद वह लड़का दूर भाग गया, हाथ ही नहीं आया। मुझे लोगों की यह बात भी अच्छी नहीं लगती कि जब हम दोनों आपस में कहीं खड़े होकर बात करते हैं तो लोग पास आकर खड़े हो जाते हैं और कुछ लोग तो इतने पास आ जाते हैं कि मैं उनसे हिन्दी में पूछ ही लेता हूं कि क्या ऊपर चढ़ेगा क्या? तो वो चौंक जाते हैं और कतराकर इधर-धर चल देते हैं।" ऎसा लगता है कि हम पर ज्योति और नाशी का पिछले जन्म का कोई कर्ज बाकी है, जिसे लेने आए हैं और इनकी आत्मा यहीं घूम रही थी। इसीलिए इन्हें राजस्थान और यहां के लोगों से इतना प्यार है कि जब इनका वीजा समाप्त होने लगता है तो इन्हें बहुत दुख होता है और ऎसा लगता है जैसे इन्हें जबरदस्ती अपने घर से निकाला जा रहा है।
जटिलताएं भी बहुत है :-
ज्योति यानि एन्जो ने बताया कि इस जीवन में अनेक जटिलताएं भी है। इटली को छोड़े तीन दशक से अधिक समय हो गया है। प्रतिवर्ष व समय-समय पर वीजा सम्बन्धी नियमो का पालन करना पड़ता है। इसके अलावा कई दस्तावेज समय-समय पर जमा करवाने पड़ते है। एन्जो ने बताया कि राईका जीवन शैली में जिंदगानी बिताना ही उसका जीवन का लक्ष्य है। इटली में स्थित मकान का किराया उसके जीवन यापन के लिए पर्याप्त है। ज्योति ने बताया की बीकानेर खूबसूरत शहरों में से एक है बीकानेर की हवेलियां, यहाँ के ऊंट, महल व किले विशेष पसंद है। हालांकि पुष्कर और जैसलमेर जाना अधिक हुआ है लेकिन बीकानेर की तुलना में वहाँ का जीवन शांत है।
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हमारे गाँव से इन्सान शहर, शहर से महानगर और महानगर से विदेश जाने की सोच में रहता है और ये लोग विदेशों से हमारे गाँव में आये हैं। तात्पर्य साफ है कि पाश्चात्य संस्कृति से लोग ऊबते जा रहे हैं, गाँव की संस्कृति को पहली मान्यता दे रहे हैं। मशीनीकरण से ऊबकर ताजी हवा, देशी खानपान और खुले वातावरण की तरफ पुन: लौट रहे हैं और यही प्रकृति का नियम है कि विज्ञान की ऊँचाइयों तक पहुँचकर, मानव को पुन: वहीं आना पड़ता है, जहाँ से वह आरंभ हुआ था।
ज्योति और नाशी को उनके कार्य के लिए उन्हें कई बार पुरष्कार से नवाजा जा चुका है 2005 में राजस्थान के वर्तमान में मंत्री श्री ओटाराम देवासी से भी जो बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और भूजल के संयुक्त राष्ट्र के सतर्क उपयोग के साथ ही अन्य संसाधनों की वजह से खतरे में है का पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे के खिलाफ कार्रवाई करने जैसे विषयों पर चर्चा कर चुके है। वे विशेष रूप से चारागाह की कमी के बारे में भी चर्चा कर चुके है। ज्योति और नेशी 'सीमा सुरक्षा बल' दल के साथ 'जैसलमेर डेजर्ट फेस्टिवल' 1998 के उद्घाटन परेड का नेतृत्व भी कर चुके है।
सौजन्य से :- समाचार पत्रिका।
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4 टिप्पणियाँ
Jii
जवाब देंहटाएंRam ram sa
हटाएंजय श्री राम मित्रो , जय जैतैशवरजी की - - - 🙏🏼🙏🏼 आपका छोटा भाई बलदेव देवासी जैतु 👏🏿📗 - - मित्रो कुछ दिनो सै सोसल मिडिया पर हम हर एक छोटी -मोटी बात पर बहस करतै है - हमै वैचारिक स्वतंत्रा के तौर पर विचार रखना भी चाहिऐ - क्या हम वाकिई मै सोसल मिडिया सै बाहर जमिनी स्तर के काम मै सहयोग कर सकतै है - - - सबसै पहले तो देवासी प्रवासी भाईयो का आभार जो देवासी समाज मै बालिका शिक्षा के लिए मैहनत कर रहै है ऊसका परिणाम भी समाज विकास मै सार्थक सिदृ होगा - - 1--: पहला बिन्दु समाज को नशामुक्त कराने मै हम क्या योगदान दै सकतै है - देवासी समाज के पसिनै कै पैसै अफिम -डोडा जैसै नशो मै हद सै अधिक बर्बाद होतै है - और भीनमाल क्षेत्र मै तो सबसै ज्यादा - क्यु नही समाज के सम्मैलन मै ईस मुद्दो पर विचार करकै पुर्णतय बंन्द करने की पहल की जाऐ - 🎤🎤- देवासी समाज के तमाम नैता अधिकारी पंचगण व सभी युवा भाई सब मिलकर एकही आवाज मै बात करै तो ईस काम मै हम सफल हो सकतै है - मित्रो आज सै 14-15 साल पहले भीनमाल मै ईस बात को लेकर समाज एक भी हुई थी - लेकिन ऊस समय जार्गती कम थी - फिर भी काफी हद तक सफल हुऐ है लेकिन अब समाज का हर भाई ईस नशामुक्त समाज के निर्माण मै योगदान दै 🙏🏼🎤 - - 2- गुरूगादी कै लिए एकमत होना - अभी भाई अशोक जी पत्रकार नै ईस मुददे को समाज कै सामनै रखा है यह भी एक विचारणिय है - 3- 🎤🎤 निष्क्रमणिय विद्यालय भलखाङी का - जैतैश्वरजी के चरणो मै जब सिऐम नै घोषणा की थी वह कैवल देवासी समाज कै लिए की थी न की देवनारायण बोर्ड कै साथ - 4- मित्रो अब देवासी प्रवासी मित्र गरूप आँफ ईन्डिया के तहत भीनमाल मै बालिका समान सम्मारोह होगा तो - संस्था के भाईयो को सहधन्यावाद कै साथ गुजरात रैक्ट की तरह राजस्थान रायका समाज के लिए एक राज्य स्तरिय टिम तैयार कर सकतै है - - 5- आनै वाले चुनावो मै अपनै समाज का हित करनै वाले का साथ और गुमराह करने वालै को सबक 🎩📙🎤 - - - ईस प्रमुख बातो पर भी समाज के तमाम समाज सैवी सरकारी कर्मचारि नैता पत्रकार समाज के सभी भाई- बहन को ईस विष्यो पर चर्चा होनी चाहिऐ - न की किसी आदमी के लिए व पार्टी के लिए - जय श्री राम 🙏🏼🙏🏼 आपका शुभैच्छु -बलदेव देवासी जैतु
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