भोलाराम देवासी ने की नशा मुक्त आयोजन की पहल

अच्छी पहल नशा मुक्त आयोजन की दिशा में एक कदम

समाज आज भी अनेक कुप्रथा एवं कुरीतियों और सामाजिक बुराइयों रूढ़िवादी परम्परा से भरा पड़ा है, जिसमें बाल-विवाह, नशा खोरी, दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, अशिक्षा, आदि-आदि। मारवाड़ में आज भी शादी-विवाह मृत्यु भोज और अन्य समारोह में "अफीम की मनुहार" जैसी रूढ़िवादी परम्परा बिना किसी रोक-टोक से निभाते चले आ रहे है, समाज में व्याप्त नशाखोरी जो न केवल कर्ज में डुबो रही है बल्कि युवा पीढ़ी को खत्म कर रही है जिस देश और समाज का युवा खत्म हो जाता है उसके लिए अपना वजूद बचाना मुश्किल हो जाता है हमारे समाज में विवाह शादियों में और बुजर्ग की मौत के अवसर पर मनुहार के नाम पर अफ़ीम और शराब का खेल खेला जाता है वो न केवल सामाजिक बुराई है बल्कि समाज के लिए शर्मिंदगी व कलंक है लोगो को सामाजिक दबाव में परम्परा निभाने की एवज में न केवल कर्ज में डूबना पड़ रहा है युवा वर्ग को भी अंधेरे के कूँए में धकेलने का काम भी हम कर रहे है इसलिए इस बुराई को खत्म करने के लिए समाज में जागरूकता लानी होगी और पहल भी करनी होगी आज का युग प्रतिस्पर्धा का है इसमें व्यक्ति को सजग, सावधान व जागरूक रहकर उपलब्ध संसाधनों का मितव्यतापूर्वक उपयोग करना चाहिए परन्तु खेद का विषय है कि हमारा रेबारी समाज आज भी अनेक कुरीतियों व सामाजिक बुराईयो से ग्रस्त बना हुआ है हालंकि हमने समय के साथ साथ अपने समाज में सामाजिक चेतना लाने का प्रयास किया है और समाज के बहुत से चिंतको, विचारकों व शिक्षित अग्रणी लोगो से इन सामजिक बुराईयों पर लोगो को आगाह भी किया है

भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी भोलाराम देवासी ने की नशा मुक्त आयोजन की पहल

IRS Bholaram Dewasiअभी कुछ दिन पहले का ताजा  उदाहरण है:- भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी भोलाराम देवासी ने न केवल इस कुरीति के खिलाफ आवाज उठाई है बल्कि इस अफीम जैसी नशा खोरी अपने घर से उखाड़ फेकने की पहल भी की है। जालोर जिले के समीपवर्ती गांव सांथू में भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी भोलाराम देवासी के पिता श्री अमरा राम जी का 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था और अपने पीछे दो-पुत्र एवं दो पुत्रियों सहित भरा पूरा परिवार छोड़ कर गए है, उनकी पत्नी का स्वर्गवास 1987 में हो गया था उन्होंने परिवार में अपने बच्चो का लालन-पालन माता पिता की भूमिका निभाकर अपने बच्चो को कमजोर आर्थिक स्थिति व विपरीत परिस्थितियों में भी सुशिल व संस्कारित किया उनकी दृढ इच्छाशक्ति व मेहनत का ही परिणाम है कि उनका बढ़ा पुत्र भोलाराम भारतीय प्रशासनिक सेवा व छोटा पुत्र गोपाराम स्कूली शिक्षा में व्याख्याता के रूप में सेवारत है। उन्होंने समाज में हमेशा नशा प्रवृति जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई उनकी हार्दिक इच्छा थी की सामाजिक सभा समारोह में अफीम डोडे इत्यादि नशा सेवन पर स्थायी रोक लगे, उनकी हार्दिक इच्छा का सम्मान करते हुए उनके पुत्रो नाते रिस्तेदारो ने उनके लौकिक कार्यक्रम में 13 दिन तक चले शोक श्रद्धाजलि सभा व गंगा प्रसादी के मोके पर पूरा आयोजन नशा मुक्त रहा क्षेत्र में हुए इस नशा मुक्त गंगा प्रसादी के मोके आयोजन की पहल को व्यापक समर्थन और सहराना मिली। तथा पुण्य आत्मा स्वर्गीय श्री अमरारामजी को यही सच्ची श्रद्धांजलि है।
आज ऐसे लोगों के लिए समाज को अच्छे रास्ते पर लाने का प्रयास बङा ही चुनौतीपूर्ण हो गया है।क्योंकि आज कई लोग कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाकर समाज के उन लोगों को नाराज नहीं करना चाहते। समाज के बुध्दिजीवी वर्ग द्वारा लिए गए इस तरह के अच्छे निर्णय समाज को एक नई दिशा की और ले जाएंगे। आपकी यह पहल बहुत ही सराहनीय व प्रेरणादायक है। इस तरह की पहल अपने घर से करना निश्चित रूप से बहुत बडा कदम है। इस तरह के फैसले लेने वाले इंसान में समाज के ताने सुनने व पहल को अटल रखने के लिए  हिम्मत की जरूरत होती है। में जानता हूँ कि इस तरह समाज में चली आ रही कुरीतियों को तोड़ते हुए नये रास्ते पर चलना बड़ा मुश्किल है।






 भोलाराम देवासी का समाज के युवाओं के नाम सन्देश

अफीम हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग जिसे सेवन करने वाले इसे शूरों - वीरों का नशा कहते हुए बड़े "गर्व" के साथ मनुहार करते है अथवा मनुहार स्वीकार करते हैं। अफीम ने हमारे समाज में अपनी गहरी पैठ जमा ली है। प्राचीन समय में दर्द निवारक अथवा अन्य दवा नहीं होने से अफीम ने अपनी उपयोगिता औषधि के रूप में सिद्ध कर अपना महत्व साबित किया। युद्धों में प्रस्थान करने वालों, संघर्ष से घबराने वालों, लड़ाई के दौरान घायल होने वालों, परिस्थिति वश भूखे रहने वालों, थकान - परेशान होने वालों, वृद्धावस्था से घबराने वालों, बीमार रहने वालों, अपना आत्म बल व आत्म विश्वास खोने वालों, शारीरिक विकृतियों या व्याधियों से पीड़ित जनों ने अफीम को 'संजीवनी' के रूप में स्वीकार किया। अफीम राजा - महाराजा, ठिकानेदार तथा धनाढ्य लोगों के पास उपलब्ध रहा तथा उसे प्रतिष्ठा भी खूब मिली। बड़े लोगों के प्रभाव से यह भी सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में रीति - रिवाजों में गहरी जड़ों के साथ स्थापित हो गया। अब कोई भी सुख, दुःख के अवसर या किसी सामाजिक समारोह जैसे - जन्म, सगाई,  विवाह, स्वागत, विदाई, बधावा, प्रतिष्ठा, पूजा, सत्संग यहाँ तक की गमी के अवसर पर भी अफीम की रस्म अनिवार्य हो गई। रैयाण, सगाई व अन्य वचन पालन तथा समझौता वार्ता बिना अफीम के सम्भव ही नहीं रहा। अब अफीम प्रतीक की जगह अपरिहार्य हो गया। उसका स्तर यहाँ तक बढ़ गया कि अफीम सेवन के विरुद्ध सोचना भी जैसे संभव ही नहीं रह गया। आधुनिक वैज्ञानिकों ने अफीम के महत्व को प्रमाणित कर उससे दवाइयाँ बनानी शुरू की तथा दूसरी तरफ सरकार ने इसके नशे से प्रजा को बचाने हेतु इस पर पाबन्दियां लगा दी।  वर्तमान में अफीम के नशे का दुष्प्रभाव अपनी सभी सीमाएं लांग रहा है। निठल्ले व कूप मंडूक किस्म के लोग इसे बहुत ही बढ़ावा दे रहे है। बड़े बुजुर्ग अफीम व डोडी के आदी होकर जिन्दा लाश बने हुए उसकी दलदल में आकंठ डूबे हुए समाज के लिए नासूर बने हुए है क्योंकि वे स्वयं डूबने के बावजूद अफीम की प्रशंसा करते नहीं थकते। उन्हें चाहिए कि यदि वे नहीं छोड़ पा रहे हैं तो कोई बात नहीं पर अपनी आने वाली नस्लों को बर्बाद करने की कोशिश तो न करे अर्थात अफीम का महिमा मंडन न करे। पर वे अपनी हीन भावना से बचने हेतु स्वयं को सही बताने का प्रयास करते रहते है। युवा अवस्था से प्रौढ़ होने वाली पीढ़ी में कई लोग नशा सीखने में लगे हुए हैं तो कुछ पढ़े लिखे व तथाकथित "जागरूक" लोग भी उनकी मनुहारें स्वीकार कर आग में घी का काम कर रहे हैं। इन सक्रिय लोगों पर समाज के उज्ज्वल भविष्य की जिम्मेदारी है पर वे जिस लापरवाही से अफीम रूपी जहर से समाज को खत्म करने में लगे हुए है उनको धिक्कार है। बारम्बार धिक्कार।
ईश्वर हमें सद्बुद्धि दे कि हम समाज चरित्र की लाज रखते हुए अपनी जिम्मेदारी को समझ कर अपने स्वाभिमान को जीवित रखने हेतु सजग बनें। अफीम की मनुहार को दृढ़ता से 100% मना करें.
यह महामारी स्वतः अपना दम तोड देगी.


आऔ हम सब मिलकर एक नशा मुक्त एवं स्वस्थ समाज व राष्ट्र का निर्माण करे.....
ना अफीम खाएं, ना खिलाएं. मनुहार ना करे व ना ही अफीम का  समर्थन करें.
Published By :- Sandeep Raika Jhunjhunu (Web Operator)